गंभीर मामलों में बच्चों को नहीं मिल रहा न्याय!

मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग में कर रहे शिकायत
भोपाल । प्रदेश में बच्चों को जेजे एक्ट व पॉक्सो जैसे गंभीर मामलों में समय पर न्याय नहीं मिल पा रहा है।न्याय की आस में बच्चों के अभिभावक मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग में शिकायत करने पहुंच रहे हैं। आयोग खुद के स्तर के मामलों को तो दोनों पक्षों को बुलाकर निपटा देता है। लेकिन जब सरकारी विभागों से जुड़े मामलों पर आयोग सरकारी कार्यालयों में जानकारी के लिए अनुशंसा पत्र भेजता है तो उसका जवाब नहीं मिलता है। सितंबर 2018 से ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें सरकारी विभाग आचार संहिता का बहाना बनाकर अनुशंसा पत्रों को दबा देता है। जब बार-बार आयोग की तरफ से अनुशंसा पत्र भेजा जाता है तो सरकारी कार्यालयों के अधिकारी चुनाव ड्यूटी में अधिकारियों व कर्मचारियों के लगे होने का बहाना बनाते हैं। इसमें 150 से अधिक ऐसे गंभीर मामले हैं, जिन पर सरकारी विभाग ने अभी तक कोई जवाब नहीं भेजा है। प्रदेश के सभी जिलों से वर्ष 2018-19 में बाल आयोग में कुल 325 शिकायतें मिलीं हैं। इनमें से 149 मामले का निराकरण हो चुका है। इसके बाद आयोग ने 176 मामलों पर संबंधित सरकारी विभागों में अनुशंसा पत्र भेजा है, लेकिन कोई जानकारी नहीं भेजी गई है। ज्ञात हो कि आयोग में 2017-18 में प्रदेशभर से 268 मामले आए, जिसमें सिर्फ 99 मामले का निराकरण हुआ है।
आयोग में प्रदेशभर से 268 प्रकरण में से 169 लंबित हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आयोग में प्रकरणों का निपटारा कितनी धीमी गति से हो रहा है। इसमें सबसे ज्यादा जेजे एक्ट के 102, आरटीई के 71, पॉक्सो के 27 और निजी स्कूलों सहित अन्य 68 मामले हैं। आयोग ने बताया कि सभी मामलों की अनुशंसा कर संबंधित विभाग को भेज देते हैं। 2018-19 के 80 ऐसे गंभीर मामले कलेक्टर कार्यालय में लंबित हैं, जिन पर तुरंत कार्रवाई होनी थी, लेकिन जानकारी नहीं मिलने के कारण निराकरण नहीं हो पाया। इसके अलावा शिक्षा विभाग में 60 मामले ऐसे हैं, जिन पर जिला शिक्षा अधिकारी, राज्य शिक्षा केंद्र या लोक शिक्षण संचालनालय में अनुशंसा पत्र भेजने पर कोई जानकारी नहीं भेजी गई है। आयोग के अध्यक्ष राघवेंद्र शर्मा का कार्यकाल 5 मार्च को खत्म हो गया है। इसके बाद आचार संहिता के कारण अध्यक्ष पद पर नई नियुक्ति नहीं होने से कई कार्य प्रभावित हो रहे हैं। अध्यक्ष के जाने से अब आयोग के मामलों को कलेक्टर या स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारी गंभीरता से नहीं लेते हैं। साथ ही सरकारी विभागों के अधिकारियों द्वारा चुनाव में ड्यूटी लगने के बहाने के कारण भी लंबित मामले बढ़ते जा रहे हैं। इस बारे में बाल आयोग के सदस्य ब्रजेश चौहान का कहना है कि अधिकतर मामलों में शासन स्तर पर जानकारी नहीं मिलने के कारण मामले लंबित हैं। जिनके कारण कई बार आवेदक को गंभीर मामलों में त्वरित न्याय नहीं मिल पाता है। कलेक्टर कार्यालय में 80 गंभीर मामले लंबित हैं।
सुदामा नर-वरे/19मई2019