जौहरियों से ज्यादा महत्वपूर्ण भगवान की तराजू : स्वामी रामदयाल –

:: गीता भवन में चल रहे गीता जयंती महोत्सव में आज शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती आएंगे ::
इन्दौर (ईएमएस)। गीता अर्जुन के लिए ही नहीं, हम सबके लिए है। जीवन के कर्म एवं व्यवहार क्षेत्र में आने वाले कुरूक्षेत्र के मैदान में हर दिन हमें अर्जुन की तरह जूझना पड़ता है लेकिन सफलता हासिल करना गीता और कृष्ण की मदद के बिना संभव नहीं है। भगवान की तराजू जौहरियों की तराजू से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है जो हीरे-जवाहरात के बजाय हमारे कर्मों का आकलन करती है। गीता ने कर्म पर जोर दिया है क्योंकि कर्म के बिना किसी भी तरह का फल नहीं मिल सकता। हम सब परमात्मा के ही अंश हैं और जब तक मन की पवित्रता से ज्ञान प्राप्त नहीं करेंगे, तब तक मन को बुद्धि से नियंत्रित करना संभव नहीं होगा। बुद्धि की शुद्धि से ही कर्मों की श्रेष्ठता संभव है।
ये दिव्य विचार हैं अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के जगदगुरू आचार्य स्वामी रामदयाल महाराज के, जो उन्होने आज गीता भवन में चल रहे 61 वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव की महती धर्मसभा में अध्यक्षीय आशीर्वचन देते हुए व्यक्त किए। सुबह की धर्मसभा में पं. रसिक बिहारी ने भजन संकीर्तन प्रस्तुत किए। इलाहाबाद से आए पं. जयशंकर शास्त्री, हरिद्वार के स्वामी गोपालानंद सरस्वती, रामकृष्ण मिशन इंदौर के सचिव स्वामी निर्विकारानंद महाराज, चिन्मय मिशन इंदौर के स्वामी प्रबुद्धानंद सरस्वती, वृंदावन के स्वामी प्रणवानंद सरस्वती ने भी गीता, मानस, योग, प्राणायाम एवं जीवन के व्यवहार क्षेत्र से जुड़ें विषयों पर अपने प्रभावी विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष गोपालदास मित्तल, मंत्री राम ऐरन, रामविलास राठी, रामचंद राजवानी, महेशचंद्र शास्त्री, सोमनाथ कोहली, प्रेमचंद गोयल, जे.पी. फडिया आदि ने सभी संत-विद्वानों का स्वागत किया। मंच का संचालन किया स्वामी देवकीनंदन दास ने। दोपहर की सत्संग सभा में आगरा के वेदांताचार्य स्वामी हरियोगी, रामस्नेही संत हरसुखराम, गोराकुंड रामद्वारा के संत अमृतराम रामस्नेही, युवा वैष्णवाचार्य द्वितीय पीठ युवराज गोस्वामी वागधीश बाबाश्री, उज्जैन के स्वामी वीतरागानंद ने भी अपने ओजस्वी विचारों से हजारों भक्तों का मन मोह लिया। अध्यक्षीय आशीर्वचन के साथ आज के सत्संग सत्र का समापन हुआ।
:: संतों के प्रवचन ::
रामकृष्ण मिशन के सचिव स्वामी निर्विकारानंद ने कहा कि ईश्वर को कही और खोजने की जरूरत नहीं है। वह तो हमारे अंदर ही विराजमान है। दीन दुखियों और जरूरतमंदों में भगवान के दर्शन का भाव रखने का अभ्यास जरूर करें। सेवा के लिए घर छोड़ कर सन्यास लेने की जरूरत नहीं है। अपनी गृहस्थी को ही घर में मंदिर की तरह बना ले तों हमारा आचरण भी भगवानोन्मुखी हो जाएगा। ईश्वर तो कण कण में मौजूद है। श्रद्धा के बिना दर्शन नहीं हो सकते।
चिन्मय मिशन के प्रमुख स्वामी प्रबुद्धानंद सरस्वती ने कहा कि गीता की शुरूआत विषाद योग से हुई है। विचित्र बात है कि विषाद को भी योग माना गया है। मनुष्य के जीवन में दुख तो आता ही है। राम, कृष्ण, परमहंस, शंकाराचार्य से लेकर साधारण मनुष्य भी दुख की चपेट में आया है। मनुष्य जीवन है तो इच्छाएं तों होगीं ही। गीता स्वयं को बदलने की बात करती है। हम जमाने को नहीं बदल सकते, जमाने को बदलने जाएंगे तो जमाना हमें ही बदल देगा। बदलाव की शुरूआत खुद से करनी चाहिए। भगवान के शब्दकोश में लाभ के साथ हानि शब्द नहीं है, वहां अलाभ शब्द आया है। आशय यह है कि भगवान किसी को हानि नहीं पहुंचाते। कर्मफल से कोई नहीं बच सकता। भगवान के सीसी टीवी कैमरे हर जगह लगे हुए हैं। कर्म हमारे हाथ में है, कर्मफल नहीं। जबतक हमारी बुद्धि प्रसाद बुद्धि नहीं होगी, कर्मो में सुधार नहीं आ पाएगा। भगवान को निर्मल मन और बुद्धि वाले लोग ही पसंद हैं।
महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवादंन सरस्वती ने सााधकों को योग एवं प्रााणायाम का अभ्यास भी कराया और कहा कि श्रवण भी साधना का ही रूप है। श्रवण में एकाग्रता और सावधानी होना चाहिए। दूसरों को पराजित करने के लिए परामाणु बम भी छोटा पड़ सकता है लेकिन स्वयं को मारने के लिए कुछ नहीं लगता। परमात्मा, गुरू, मंदिर और तीर्थ जब भी जाएं कुछ लेकर ही जाएं। इनके सामने अपने अहंकार का समर्पण कर देना चाहिए। जीवन में सुनो ज्यादा, बोलो कम। धर्म जीवन जीने की शैली है। धर्म एक आचरण है। धर्म रक्षा करता है। धर्मयुक्त आचरण से ही मनुष्य को शांति मिल सकती है। आगरा के स्वामी हरियोगी ने कहा कि दुनिया में गीता से ज्यादा प्रभावी और चमत्कारिक ग्रंथ कोई और नहीं हो सकता। दुनिया के सभी संशयों की चाबी इस ग्रंथ में मौजूद है।
गोराकुंड रामद्वारा के संत अमृतराम महाराज ने कहा कि मनुष्य जीवन में हर तरह के संकट आते जाते रहते है। गीता स्वयं भगवान का भाष्य अवतार है। गीता की शरण में पहुंचे व्यक्ति का उद्धार अवश्य होता है।
आज के संदर्भों में गीता की उपयोगिता और अधिक बढ़ गई है। युवा वैष्णवाचार्य गोस्वामी वागधीश बाबाश्री ने कहा कि मानव देह क्षण भंगुर है। जबतक जीवन है, परमार्थ और सेवा के कार्य निरंतर करते रहना चाहिए। जीवन का प्रत्येक क्षण अनमोल है, इसे व्यर्थ न जाने दें। उज्जैन के स्वामी वितरागानंद ने संस्कृत में भी प्रवचन दिए और गीता की महत्ता बताई।
:: आज के कार्यक्रम, शंकराचार्यजी आएंगे ::
गीता भवन में चल रहे 61वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव में गुरूवार 20 दिसंबर को सुबह 8 से 8.30 बजे तक भजन-संकीर्तन, 8.30 बजे से हरिद्वार के संत डॉ. श्रवणमुनि, 9 बजे से नेमिषारण्य के स्वामी पुरूषोत्तमानंद सरस्वती, 9.30 से हरिद्वार के स्वामी सर्वेश चैतन्य, 10 बजे से चिन्मय मिशन इंदौर के स्वामी प्रबुद्धानंद सरस्वती, 11 बजे से उज्जैन के स्वामी वितरागानंद तथा 11.45 से जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज के अध्यक्षीय आशीर्वचन होंगे। दोपहर की सत्संग सभा में 2 से 2.30 बजे तक भजन-संकीर्तन के बाद 2.30 से वृंदावन के स्वामी केशवदेव महाराज, 3 बजे से पं. रामज्ञान पांडे, 3.30 से पाीनपत के स्वामी दिव्यानंद सरस्वती, 4 बजे से वृंदावन के महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वती एवं सांय 5 बजे से जगदगुरू शंकराचार्य, पुरीपीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती के प्रवचनों की अमृत वर्षा के बाद 6 बजे से जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज के आशीर्वचन होंगे।
उमेश/पीएम/19 दिसम्बर 2018

संलग्र चित्र – गीता भवन में चल रहे अ.भा. गीता जयंती महोत्सव में महती धर्मसभा को संबोधित करते जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज, रामकृष्ण मिशन के स्वामी निर्विकारानंद, चिन्मय मिशन के स्वामी प्रबुद्धानंद सरस्वती, महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवादंन सरस्वती।