राजनीति हनुमान धर्माचार्य तीन अंतिम प्रयागराज

धर्मगुरू ने कहा कि सनातन धर्म में जहां जाति की चर्चा आयी है, वहां यही कहा गया है कि यह शरीर के ही अंग है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और सूद्र की जो बाते कहीं गयी हैं उसका तात्पर्य है कि यह सब शरीर के अपने अंग हैं। किसी एक बिना हम अपंग हो जायेंगे। देवों को जाति और धर्म में बांटना सनातन धर्म पर प्रहार कर उसे विखंडित करने का कार्य किया जा रहा है। नेता जब देवताओं को जातियों में बांट कर देखना शुरू कर दे यह समझना चाहिए कि निहित स्वार्थ के लिए देश को किस मोड़ पर ले जाया जा रहा है।
देवरहवा बाबा सेेवाश्रम पीठ के आचार्य रामेश्वर प्रपन्नाचार्य शास्त्री ने किसी भी किसी भी व्यक्ति को हमेशा संयमित भाषा ही बोलना चाहिए। यदि वह राजनेता है तो उसे और भी मर्यादित और संयमित बयान देना चाहिए क्योंकि उसका बयान समाज, प्रदेश और देश के लिए बरदान और अभिशाप दोनों का कार्य करता है। उसकी जरा से अमर्यादित बयानबाजी किसी भी पार्टी के लिए गले की हड्डी बन जाती है। उस पार्टी के सामने सिवाय यह कह कर पल्ला झाडने के अलावा कुछ नहीं बचता कि इस बयान से पार्टी का कुछ लेना देना नहीं है। यह उनका निजी मामला है।
उन्होंने कहा कि क्या कभी भगवान की जाति का कोई पता लगा पाया है। एक बार फिर चुनाव सामने देख हनुमान जी को भाजपा के लोग अपनी जाति में शामिल कर क्या सिद्ध करना चाहते हैं। जाति के झगड़े में फंसे हनुमान को कभी मुसलमान तो कभी जाट और कभी दलित बनाया जा रहा है। राजनेता आधारहीन बातों से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं। क्या सत्ता का नशा इस कदर हावी हो गया कि नेता समाज और भगवान को जाति में बांट रहे हैं। उन्होंने कहा कि नेताओं की अनर्गल बयानबाजी बड़े नेताओं की निगाह में रैटिंग बढ़ाने का प्रयास तो नहीं।
गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनो से हनुमान जी की जाति और धर्म को लेकर नेता बयान दे रहे है। राजस्थान की एक चुनावी सभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा कथित रूप से हनुमान जी को दलित बताया गया था जबकि बाद में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के धर्मार्थ कार्य मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण और विधान परिषद सदस्य बुक्कल नवाब ने “पवन पुत्र हनुमान” को “जाट और मुसलमान” की श्रेणी में खड़ा कर इसे हवा दी।
दिनेश प्रदीप
वार्ता