मी टू: एक लेख को बार-बार छापना आरोपी के अधिकार का हनन

नई दिल्ली । यौन उत्पीड़न की शिकायतों (जिनमें पीड़िता का नाम गुप्त रहे) पर आधारित लेखों को बार-बार प्रकाशित किया जाना और मी-टू अभियान को भड़काना एक पुरुष की निजता का हनन है। हाईकोर्ट ने ऐसे लेखों के प्रकाशन पर रोक लगाते हुए यह टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने एक मीडिया हाउस के प्रबंध निदेशक के खिलाफ दोबारा लेख प्रकाशित करने पर रोक लगाते हुए कहा कि मी-टू अभियान किसी को हमेशा कलंकित करने वाला कैंपेन नहीं बन सकता। एक ही लेख को बार-बार प्रकाशित करने की इजाजत दी जाती है तो याचिकाकर्ता का अधिकार गंभीर खतरे में पड़ जाएगा। दरअसल, मी टू अभियान के तहत यौन उत्पीड़न को लेकर मिली शिकायत के आधार पर पिछले अक्तूबर में एक प्रतिष्ठित डिजिटल प्लेटफॉर्म ने दो खबरें प्रकाशित की थीं। इनमें तीन महिलाओं ने इस व्यक्ति पर आरोप लगाए थे। उनके नाम गुप्त रखे थे। हाईकोर्ट में दायर याचिका में आरोपी ने कहा कि उनके खिलाफ एक ही लेख को बार-बार छापा गया। वह मीडिया का जाना-माना चेहरा हैं और आधारहीन आरोपों के कारण उन्हें भारी प्रताड़ना व दुख झेलना पड़ा। पिछले साल १४ दिसंबर को हाईकोर्ट ने लेखों पर रोक लगा दी थी। ५ दिन बाद वेब पोर्टल और लेखक ने दो लेख हटा लिए थे। आरोपी के वकील ने नौ मई को कोर्ट को बताया कि उन पुराने लेखों को अब दूसरे डिजिटल प्लेटफॉर्म ने इस्तेमाल किया है। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि यह आरोप मी टू अभियान के दौरान लगाए गए थे और तीनों पीड़ितों के नाम गुप्त थे। प्रकाशक ने लेखों को हटाने का फैसला किया। उसी लेख को दोबारा प्रकाशित करने पर रोक लगनी चाहिए। एक ही लेख को बार-बार प्रकाशित करना याची के अधिकार का हनन है।