मैंने नदी का किनारा देखा
बाढ़ के बाद
पुनः जीने के लिए
संघर्ष करता हुआ
मछुवारे को जाल बुनते हुए
मैंने नदी का किनारा देखा
बाढ़ के बाद
अस्त-व्यस्त बेतरीब बेढंग
लेकिन मृत से जीवन की
और बढ़ता हुआ
मैंने नदी का किनारा देखा
बाढ़ के बाद
नदी के सन्तानों की
पुनः आशियानें को
सवांरते संभालते देखा
बाढ़ के बाद मैंने नदी का
किनारा देखा
विशाल तरुओं को
फिर से जीते,खग को
आशियाने बनाते हुऐ
मैंने नदी का किनारा देखा
बाढ़ के बाद
खेतों में फसलें उगाते किसानों
को विध्वंस से नवनिर्माण करते
इंसानों को
बाढ़ के बाद
मैंने नदी का किनारा देखा
अभिशाप को इंसानों, प्रकृति
द्वारा वरदान बनाते हुए
ईश्वर को हराते हुए
वाकई मैंने नदी के किनारे
को देखा बाढ़ के बाद
कोटिल्या संदीप चौहान “नर्मदावासी”
उम्मेदपुरा (डही) जिला धार