माटी का पुतला है तू
इक दिन माटी में मिल जाएगा
व्यर्थ घमंड को छोड़ दे प्यारे,
अमरत्व को तू पा जाएगा।
दो कौड़ी की क्या माया जोड़ी
देह अभिमान से मिलाई जोड़ी
बेईमानी का जब रंग चढ़ा
अनैतिकता की ओर आप बढ़ा
रिश्तों का खून चूस गया तू
स्वास्तित्व को मिटा गया तू
झूठे दंभ को जब अपनाएगा
इक दिन ख़ुशी के नहीं
खून के आँसू बहाएगा
त्याग दे ऐसी आजादी
जो बन जाए अपनी बर्बादी
सच्चाई की चक्की
जब भी तू चलाएगा
अमरत्व को तू पा जाएगा।
कहे आसमान पर भी मेरा डेरा
क्या नाप पाया कभी खुद का घेरा
कितने हैं सच्चे साथी इमानी
की न हो कभी किसी ने बेईमानी
जो तुझे अपना कहलाता है
मगरमच्छ के दो आँसू बहलाता है
जिस दिन माया का साथ छूटेगा
हर एक तुझे द्रौपदी-सा लूटेगा
कोई न होगा संगी साथी
मौत भी आए तो न होंगे बाराती
लौटकर इमान राह को
यदि आज भी अपनाएगा
अमरत्व को तू पा जाएगा।
ऐ दोस्त! चल घर अपने
जहाँ बुने सन्मार्ग के सपने
मोह-माया का बंध तोड़ दे
इंसानियत का नाता जोड़ दे
दिलों-जान से सबको अपनाएगा
अमरत्व को तू पा जाएगा।
मच्छिंद्र भिसे
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